चेहरों की कहानी
शहर की भीड़भाड़ वाली गलियों में, हर दिन अनगिनत चेहरे आते-जाते रहते थे। कुछ चेहरे मुस्कुराते थे, कुछ चिंता में डूबे होते थे, तो कुछ इतने खाली लगते कि मानो उनमें कोई भावना ही न हो। लेकिन हर चेहरे के पीछे एक कहानी थी।
अजनबी चेहरा
रवि रोज़ सुबह 9 बजे मेट्रो पकड़ता था। उसे हमेशा एक अजनबी लड़की दिखती थी—गहरी आँखें, शांत चेहरा, और किताबों में डूबी हुई। वह उसे पहचानने लगा था, पर कभी बात नहीं हुई। एक दिन, लड़की नहीं आई। कई दिन बीत गए, लेकिन उसका चेहरा फिर कभी नहीं दिखा। रवि को एहसास हुआ कि कुछ चेहरे हमारी ज़िंदगी का हिस्सा बन जाते हैं, भले ही हमने उनसे कभी कोई शब्द न कहा हो।
झुर्रियों वाला चेहरा
एक पुराने पार्क के कोने में बैठा एक बूढ़ा व्यक्ति रोज़ कबूतरों को दाना डालता था। उसके चेहरे पर गहरी झुर्रियाँ थीं, जो उसकी ज़िंदगी की कहानियाँ बयान करती थीं। लोग उसे देखते, लेकिन कोई उससे बात नहीं करता। एक दिन, एक बच्चा उसके पास आया और पूछा, "दादा जी, आप रोज़ यहाँ क्यों बैठते हैं?"
बूढ़े व्यक्ति ने मुस्कुराकर कहा, "क्योंकि मेरे घर में कोई मेरा इंतज़ार नहीं करता।"
चेहरे हमेशा उनकी भावनाएँ ज़ाहिर नहीं करते, लेकिन उनकी आँखों में छुपी कहानियाँ बहुत कुछ कह जाती हैं।
खुशहाल चेहरा
शिखा एक सफल डॉक्टर थी। हर कोई उसकी हँसी की तारीफ करता था। लेकिन कोई नहीं जानता था कि उसके चेहरे की मुस्कान के पीछे कितनी रातों की नींद और मेहनत छुपी थी। एक दिन, उसकी पुरानी दोस्त ने कहा, "तू हमेशा खुश कैसे रहती है?"
शिखा ने जवाब दिया, "क्योंकि मैं अपने दर्द को अपने चेहरे पर नहीं लाती।"
अजनबी चेहरे
रात का समय था। दिल्ली की सड़कों पर हल्की बारिश हो रही थी, और हवा में अजीब-सी ठंडक थी। रोहित, जो देर रात तक ऑफिस में काम करने का आदी था, आज कुछ जल्दी निकल आया था। मेट्रो स्टेशन पर पहुँचते ही उसकी नज़र भीड़ में एक चेहरे पर पड़ी—एक अजनबी चेहरा, लेकिन जाने-पहचाने जैसा।
पहली मुलाकात
वह लड़की, जो हर दिन उसी समय मेट्रो में मिलती थी। लंबी, गहरी आँखें, हल्का-सा उदास चेहरा, और हाथ में हमेशा कोई किताब। आज भी वह उसी कोने में खड़ी थी, लेकिन इस बार उसकी आँखें किसी सोच में डूबी हुई लग रही थीं।
रोहित ने कई बार उसे देखा था, लेकिन कभी बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। आज कुछ अलग था। अचानक मेट्रो के झटके से लड़की का किताबों से भरा बैग गिर पड़ा। रोहित ने झुककर उसकी किताब उठाई।
"आपकी किताब," उसने कहा।
लड़की ने चौंककर उसे देखा, फिर हल्की मुस्कान के साथ किताब ले ली। "थैंक यू," उसकी आवाज़ में हल्की थकान थी।
गुमनाम बातें
रोहित और उस लड़की के बीच कोई खास बातचीत नहीं हुई, लेकिन अब हर दिन उनकी आँखें एक-दूसरे को पहचानने लगीं। एक अनकहा रिश्ता, जो सिर्फ आँखों और हल्की मुस्कान के सहारे बढ़ रहा था।
एक दिन, लड़की नहीं आई। फिर अगले दिन भी नहीं। रोहित को अजीब-सी बेचैनी होने लगी। क्या हुआ होगा? क्या वह ठीक है?
अजनबी की कहानी
तीन दिन बाद, जब वह अचानक मेट्रो में फिर से दिखी, तो उसका चेहरा बदला हुआ था। आँखों में हल्की नमी थी। रोहित ने पहली बार हिम्मत की और पूछा, "आप ठीक हैं?"
लड़की ने कुछ पल उसे देखा, फिर हल्की मुस्कान के साथ बोली, "हाँ, अब ठीक हूँ।"
उस दिन पहली बार दोनों ने नाम पूछे। रोहित को पता चला कि उसका नाम नंदिता है। धीरे-धीरे, दोनों के बीच बातें होने लगीं।
पर ज़िंदगी अजनबी चेहरों को हमेशा साथ नहीं रखती।
कुछ महीनों बाद, नंदिता को किसी और शहर जाना पड़ा। उस दिन मेट्रो में उसने कहा, "हम शायद दोबारा न मिलें, लेकिन कुछ अजनबी हमेशा याद रह जाते हैं।"
रोहित ने मुस्कुराकर कहा, "शायद अजनबी कभी पूरी तरह अजनबी नहीं रहते।"
मेट्रो का दरवाज़ा बंद हुआ, और नंदिता चली गई।
लेकिन उसका अजनबी चेहरा, हमेशा के लिए रोहित की यादों में रह गया।
निष्कर्ष
हर चेहरे के पीछे एक कहानी होती है—कुछ दर्द की, कुछ खुशी की, और कुछ उन अनकही बातों की, जो कभी शब्दों में नहीं ढलतीं। अगली बार जब आप किसी चेहरे को देखें, तो याद रखें कि उसमें एक पूरी दुनिया छुपी हो सकती है।
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