गीता प्रेस, गोरखपुर (1923) का इतिहास और योगदान
परिचय
गीता प्रेस, गोरखपुर की स्थापना 1923 में जयदयाल गोयनका और हनुमान प्रसाद पोद्दार द्वारा की गई थी। यह भारत का एक प्रमुख धार्मिक प्रकाशन संस्थान है, जो सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित है। इसका मुख्य उद्देश्य वेद, उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत, भगवद गीता और अन्य धार्मिक ग्रंथों को सुलभ और सस्ते मूल्य पर जनता तक पहुंचाना है।
स्थापना और उद्देश्य
गीता प्रेस की स्थापना का मुख्य उद्देश्य हिंदू धर्मग्रंथों को शुद्ध और मूल स्वरूप में जन-जन तक पहुंचाना था। उस समय बाजार में धार्मिक पुस्तकों की अशुद्ध प्रतियां प्रचलित थीं, जिन्हें सुधारने के लिए गीता प्रेस की शुरुआत की गई।
प्रकाशित ग्रंथ
1. श्रीमद्भगवद गीता – सबसे प्रसिद्ध और पवित्र ग्रंथ, जिसे गीता प्रेस ने विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित किया है।
2. श्रीरामचरितमानस – तुलसीदास जी की यह अमर कृति गीता प्रेस की सबसे अधिक बिकने वाली पुस्तकों में से एक है।
3. महाभारत और रामायण – संस्कृत और हिंदी अनुवाद के साथ प्रकाशित।
4. वेद, उपनिषद और पुराण – सभी प्रमुख धार्मिक ग्रंथों का शुद्ध संस्करण।
5. हनुमान चालीसा, दुर्गा सप्तशती, विष्णु सहस्रनाम आदि – लघु स्तोत्र और मंत्र पुस्तिकाएं।
6. कल्याण पत्रिका – 1926 से गीता प्रेस की मासिक पत्रिका, जो आध्यात्मिक विषयों पर आधारित होती है।
विशेषताएँ
सभी ग्रंथ बेहद सस्ती दरों पर उपलब्ध होते हैं।
कोई व्यावसायिक विज्ञापन नहीं दिया जाता।
ग्रंथों की शुद्धता और मूल स्वरूप बनाए रखने पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
देशभर में लाखों लोग इसके धार्मिक साहित्य से लाभान्वित होते हैं।
निष्कर्ष
गीता प्रेस, गोरखपुर केवल एक प्रकाशन संस्थान नहीं, बल्कि सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति का संवाहक है। 1923 में स्थापित यह संस्था आज भी धर्मप्रेमियों के लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शन का महत्वपूर्ण केंद्र बनी हुई है।
"सर्वे भवन्तु सुखिनः"
"श्रीरामचरितमानस" भारतीय सनातन संस्कृति का एक दिव्य ग्रंथ है, जिसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने रचा। यह भगवान श्रीराम के जीवन का विस्तृत वर्णन करता है। इसमें सात कांड हैं—बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधाकांड, सुंदरकांड, लंकाकांड और उत्तरकांड। इनमें से सुंदरकांड सबसे लोकप्रिय और प्रभावशाली माना जाता है।
सुंदरकांड विशेष रूप से हनुमान जी के पराक्रम, भक्ति, बुद्धिमत्ता और निःस्वार्थ सेवा को दर्शाता है। यह वह कांड है, जिसमें हनुमान जी की लंका यात्रा, माता सीता की खोज, रावण से संवाद और श्रीराम का संदेश पहुंचाने का विस्तार से वर्णन है।
सुंदरकांड का सारांश
1. श्रीराम का हनुमान जी को आदेश
हनुमान जी श्रीराम के परम भक्त हैं। जब श्रीराम को यह ज्ञात हुआ कि माता सीता लंका में रावण के कब्जे में हैं, तो उन्होंने हनुमान जी को सीता माता की खोज करने का आदेश दिया। सुग्रीव के नेतृत्व में वानर सेना समुद्र तट तक पहुंचती है, लेकिन विशाल समुद्र को पार करना एक चुनौती बन जाता है।
2. हनुमान जी का समुद्र लांघना
हनुमान जी ने अपनी शक्ति को स्मरण किया और समुद्र पार करने के लिए विशाल रूप धारण किया। मार्ग में उन्हें कई बाधाएँ मिलीं—मैनाक पर्वत, सुरसा राक्षसी और सिंहिका, लेकिन अपनी बुद्धिमत्ता और बल से उन्होंने सभी को पराजित कर दिया।
3. लंका में प्रवेश और सीता माता की खोज
हनुमान जी लंका में पहुंचकर सबसे पहले वहां की सुरक्षा व्यवस्था देखते हैं। वे लंका की अद्भुत सुंदरता और भव्यता को निहारते हैं, लेकिन उनका उद्देश्य केवल माता सीता को ढूंढना था। विभीषण के घर से होते हुए वे अशोक वाटिका पहुंचते हैं, जहां रावण माता सीता को धमका रहा होता है।
4. सीता माता को श्रीराम का संदेश
हनुमान जी विनम्रता से माता सीता के पास जाते हैं और श्रीराम का संदेश देते हैं। वे उन्हें श्रीराम की मुद्रिका (अंगूठी) देते हैं ताकि माता सीता को विश्वास हो जाए। माता सीता को सांत्वना देते हुए वे कहते हैं कि शीघ्र ही श्रीराम लंका पर आक्रमण कर उन्हें मुक्त करेंगे।
5. अशोक वाटिका का विध्वंस
हनुमान जी ने रावण की शक्ति को चुनौती देने के लिए अशोक वाटिका को नष्ट कर दिया। उन्होंने राक्षसों का वध किया और अति बलशाली अक्षयकुमार को भी मार दिया। इससे रावण क्रोधित हो गया और उसने हनुमान जी को बंदी बनाने का आदेश दिया।
6. रावण की सभा में हनुमान जी
हनुमान जी को रावण की सभा में लाया गया, जहां उन्होंने निर्भय होकर धर्म और अधर्म का ज्ञान दिया। उन्होंने रावण को चेतावनी दी कि यदि उसने माता सीता को नहीं छोड़ा, तो श्रीराम लंका को नष्ट कर देंगे। रावण ने क्रोध में आकर हनुमान जी की पूंछ में आग लगाने का आदेश दिया।
7. लंका दहन
हनुमान जी ने अपनी पूंछ को लंबी कर लिया और जब उसमें आग लगाई गई, तो वे समस्त लंका में दौड़कर उसे जलाने लगे। लंका जलकर राख हो गई, लेकिन माता सीता के कुटीर को कोई नुकसान नहीं हुआ। इसके बाद वे समुद्र पार कर श्रीराम के पास वापस लौट आए और पूरी घटना सुनाई।
सुंदरकांड का आध्यात्मिक महत्त्व
1. भक्ति और सेवा – हनुमान जी का श्रीराम के प्रति समर्पण एक आदर्श है।
2. बुद्धिमत्ता और धैर्य – कठिन परिस्थितियों में धैर्य और बुद्धिमत्ता से समस्याओं को हल करना।
3. निष्काम कर्म – बिना किसी स्वार्थ के केवल धर्म और सत्य के लिए कार्य करना।
4. आत्मबल और विश्वास – किसी भी कठिनाई को पार करने के लिए आत्मबल का होना आवश्यक है।
सुंदरकांड का पाठ करने के लाभ
1. संकटों से मुक्ति – सुंदरकांड का नियमित पाठ करने से जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।
2. नकारात्मकता का नाश – हनुमान जी की कृपा से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं।
3. साहस और आत्मविश्वास – यह पाठ व्यक्ति में आत्मबल और आत्मविश्वास को बढ़ाता है।
4. शत्रुओं से रक्षा – यह पाठ शत्रु बाधाओं से रक्षा करता है और विजय दिलाता है।
निष्कर्ष
सुंदरकांड केवल एक धार्मिक कथा नहीं है, बल्कि यह जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझाने वाला ग्रंथ है। यह हमें सिखाता है कि भक्ति, शक्ति और बुद्धि का संतुलन कैसे बनाए रखें। हनुमान जी के चरित्र से हमें निःस्वार्थ सेवा, परोपकार और साहस की प्रेरणा मिलती है।
यदि कोई प्रतिदिन सुंदरकांड का पाठ करता है, तो निश्चित रूप से उसके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं। हनुमान जी की कृपा से व्यक्ति भयमुक्त, आत्मविश्वासी और संकटों से मुक्त होकर जीवन में सफलता प्राप्त करता है।
"जय श्रीराम! जय हनुमान!"
Deepak Singh
Corecena
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