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विभिन्न धर्मों में नर्क की अवधारणा: एक विस्तृत अध्ययन
प्रस्तावना
नर्क का विचार संसार की लगभग सभी प्रमुख धार्मिक परंपराओं में पाया जाता है। यह वह स्थान है जहाँ पाप करने वालों को उनके कर्मों का दंड भोगने के लिए भेजा जाता है। नर्क की अवधारणा मूलतः नैतिकता और कर्मफल की अवधारणा से जुड़ी हुई है। धर्म चाहे हिंदू हो, बौद्ध हो, ईसाई हो या इस्लाम—हर पंथ में एक ऐसी व्यवस्था का वर्णन मिलता है जहाँ मनुष्य के कर्मों का लेखा-जोखा किया जाता है और उसी के आधार पर उन्हें स्वर्ग या नर्क में स्थान मिलता है।
यह लेख विभिन्न धर्मों में नर्क की अवधारणा को गहराई से समझने का प्रयास है। इसमें हम हिंदू, बौद्ध, जैन, ईसाई, इस्लाम और कुछ अन्य धार्मिक मान्यताओं में नर्क की परिकल्पना का अध्ययन करेंगे।
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1. हिंदू धर्म में नर्क की अवधारणा
1.1 यमलोक और यमराज
हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद आत्मा यमलोक जाती है, जहाँ यमराज उसके कर्मों का निर्णय करते हैं। यमराज को धर्मराज भी कहा गया है। गरुड़ पुराण, विष्णु पुराण और अन्य धर्मग्रंथों में विस्तार से नर्कों का वर्णन मिलता है।
1.2 अट्ठाईस नर्क
गरुड़ पुराण में कुल 28 प्रकार के नर्कों का वर्णन है, जिनमें पापियों को उनके विशेष पापों के अनुसार दंडित किया जाता है। ये नर्क निम्नलिखित हैं:
रौरव: झूठे और दूसरों को सताने वालों के लिए।
महाराौरव: क्रूर और निर्दयी लोगों के लिए।
तमिस्र: विश्वासघात करने वालों के लिए।
अंधतमिस्र: पत्नी या पति को धोखा देने वालों के लिए।
कुम्भीपाक: ब्राह्मण की हत्या करने वालों के लिए।
कालसूत्र: अत्यंत तप्त धातुओं से बना नर्क।
इनके अलावा 'असिपत्रवन', 'सूंकरमुख', 'तप्तसूर्मि' आदि और भी नर्क हैं जिनमें विविध प्रकार की यातनाएं दी जाती हैं।
1.3 कर्म और पुनर्जन्म
हिंदू धर्म में नर्क स्थायी नहीं होता। व्यक्ति अपने पापों का फल भोगकर पुनः जन्म लेता है। यह पुनर्जन्म आत्मा की यात्रा का हिस्सा होता है।
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2. बौद्ध धर्म में नर्क
2.1 नरक लोक की अवधारणा
बौद्ध धर्म में नर्क को "नरक" कहा गया है, और यह संसार के छह लोको (कामलोक, पशु-लोक, नरक-लोक आदि) में से एक है। यह अस्थायी होता है, परंतु वहाँ की पीड़ाएँ अत्यंत दुखदायी होती हैं।
2.2 आठ नरक
बौद्ध परंपरा में आठ प्रमुख नरकों का वर्णन मिलता है:
1. संजीव नरक: जीवन और मृत्यु का चक्र चलता रहता है।
2. कालसूत्र नरक: गर्म लोहे की सतह पर यातना।
3. संघाट नरक: जीवों को एक-दूसरे से कुचला जाता है।
4. रौरव नरक: अत्यंत भयंकर चीखों वाला नरक।
5. महाराौरव: हिंसा करने वालों के लिए।
6. तप्त: उबलते हुए जल में डाला जाता है।
7. प्रताप: शरीर को गर्म लोहे से जलाया जाता है।
8. अविचि नरक: सबसे भयानक और लम्बे समय तक चलने वाला नरक।
2.3 कर्म और निर्वाण
बौद्ध धर्म में भी नरक स्थायी नहीं है। आत्मा वहाँ अपने बुरे कर्मों का फल भोगकर मुक्त होती है और फिर पुनर्जन्म लेती है। निर्वाण की प्राप्ति ही अंतिम मुक्ति है।
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3. जैन धर्म में नर्क
3.1 सात नरक लोक
जैन धर्म में नरक को "नरक लोक" या "अधोलोक" कहा गया है। यह सात स्तरों में विभाजित है। नीचे जाने पर यातना की तीव्रता बढ़ती जाती है। ये हैं:
1. रत्नप्रभ
2. शर्करप्रभ
3. वालुकाप्रभ
4. पंकप्रभ
5. धूमप्रभ
6. तमःप्रभ
7. महातमःप्रभ
3.2 कर्म और आत्मा
जैन दर्शन में आत्मा पर कर्मों की परतें चिपक जाती हैं, जो इसे नर्क या स्वर्ग की ओर ले जाती हैं। केवल तप और संयम के द्वारा आत्मा इन कर्मों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकती है।
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4. ईसाई धर्म में नर्क
4.1 नर्क (Hell) की परिभाषा
ईसाई धर्म में नर्क को परमेश्वर से शाश्वत वियोग का स्थान माना गया है। बाइबिल के अनुसार, यह वह स्थान है जहाँ पापियों को अनन्त पीड़ा होती है।
4.2 बाइबिल के अनुसार विवरण
नवीन नियम में "Gehanna", "Hades" और "Lake of Fire" जैसे शब्दों का उल्लेख मिलता है। यहाँ दण्ड की प्रकृति कुछ इस प्रकार है:
अनन्त अग्नि में जलना।
कीड़े जो कभी नहीं मरते।
अंधकार में रोना और दाँत पीसना।
4.3 न्याय का दिन
ईसाई मान्यता के अनुसार, 'जजमेंट डे' (न्याय का दिन) आता है, जब यीशु मसीह सब जीवों का न्याय करते हैं और पापियों को नर्क में भेजा जाता है।
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5. इस्लाम धर्म में नर्क
5.1 जहन्नम की परिकल्पना
इस्लाम में नर्क को जहन्नम कहा गया है। यह कुरआन में विस्तार से वर्णित है। यह एक ऐसी जगह है जहाँ आग की सजा दी जाती है और पानी के बदले खौलता तरल पीने को मिलता है।
5.2 सात स्तर
इस्लाम में भी नर्क के सात स्तरों का वर्णन है:
1. जहनन
2. लज़ा
3. हूतमा
4. सईर
5. सक़र
6. जहीम
7. हाविया
प्रत्येक स्तर पाप के प्रकार और तीव्रता के अनुसार निर्धारित किया जाता है।
5.3 तौबा और रहमत
इस्लाम में भी यदि व्यक्ति जीवन में तौबा करता है (पश्चाताप), तो अल्लाह उसे माफ़ कर सकते हैं। परंतु यदि तौबा नहीं की जाती, तो जहन्नम उसका स्थान बन जाता है।
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6. यहूदी धर्म में नर्क
यहूदी धर्म में भी नर्क की अवधारणा मिलती है, जिसे शिओल (Sheol) या गेहन्ना (Gehenna) कहा गया है। यह एक प्रकार की आत्मिक यातना की जगह है, जहाँ आत्माएं अपने कर्मों का फल भोगती हैं। यह भी अस्थायी माना जाता है और आत्मा को पुनः शुद्ध कर मुक्ति दी जाती है।
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7. अन्य धार्मिक परंपराएँ
7.1 यूनानी धर्म
प्राचीन ग्रीक धर्म में हैडेस को मृतकों का लोक माना गया है। यहाँ "टारटारस" नर्क जैसा स्थान था, जहाँ अपराधियों को दंडित किया जाता था।
7.2 मिस्री धर्म
प्राचीन मिस्र में आत्मा की जाँच देवता "ओसिरिस" के सामने होती थी। यदि आत्मा दोषी पाई जाती, तो उसे नरक जैसे स्थान "दुएत" में भेजा जाता।
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निष्कर्ष
नर्क की अवधारणा चाहे किसी भी धर्म में हो, उसका मूल उद्देश्य व्यक्ति को नैतिक और धर्मपरायण जीवन जीने के लिए प्रेरित करना है। यह न केवल पापों से दूर रहने की चेतावनी है, बल्कि आत्मा की शुद्धता और मोक्ष की प्राप्ति का माध्यम भी है।
धार्मिक दृष्टिकोण चाहे स्थायी नर्क की बात करें या अस्थायी, यह स्पष्ट है कि सभी परंपराएँ यह मानती हैं कि प्रत्येक कर्म का फल अवश्य मिलता है। नर्क उसी न्यायिक व्यवस्था का अंग है जो जीवन के बाद भी व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार दंड या पुरस्कार प्रदान करती है।
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