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जागराता: एक धार्मिक-सांस्कृतिक परंपरा का विस्तृत परिचय
भूमिका
भारतीय संस्कृति में धार्मिक आयोजन एक विशेष महत्व रखते हैं। इन आयोजनों में एक प्रमुख परंपरा "जागराता" है, जिसे विशेषकर हिंदू धर्म के अनुयायी देवी-देवताओं की आराधना के रूप में आयोजित करते हैं। यह आयोजन रात्रिभर चलता है और इसमें भजन, कीर्तन, आरती तथा धार्मिक कथाएं होती हैं। जागराता केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि सामाजिक समरसता, श्रद्धा और भक्ति की अभिव्यक्ति है।
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1. जागराते का अर्थ और परिभाषा
'जागराता' शब्द संस्कृत मूल के 'जागर' और 'रात्रि' शब्दों से बना है, जिसका अर्थ है - "रात्रि भर जागकर भगवान का स्मरण करना।" यह एक धार्मिक आयोजन है जिसमें भक्तगण पूरी रात देवी-देवताओं के भजन गाकर जागरण करते हैं।
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2. जागराते का धार्मिक महत्व
जागराते का सीधा संबंध श्रद्धा, भक्ति और आस्था से होता है। मुख्यतः यह देवी दुर्गा, काली, वैष्णो माता, श्री राम, श्री कृष्ण, शिव जी और अन्य देवी-देवताओं की उपासना हेतु किया जाता है। इसके माध्यम से भक्त अपनी समस्याओं, मनोकामनाओं और कष्टों को देवी-देवताओं के समक्ष प्रकट करते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार:
जागरण करने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।
देवी-देवता प्रसन्न होते हैं और कृपा करते हैं।
भजन और कीर्तन से वातावरण पवित्र होता है।
परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
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3. जागराते की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
प्राचीन भारत में ऋषि-मुनि रात-रातभर वेदों का पाठ करते थे। धीरे-धीरे यह परंपरा भक्ति आंदोलन के दौरान भजनों में बदल गई। भक्त जैसे मीराबाई, तुलसीदास, कबीरदास, नामदेव, सूरदास आदि ने भजन-कीर्तन को जन-जन तक पहुँचाया। इसके बाद समाज में रात्रि जागरण कर भक्ति करने की परंपरा प्रचलित हो गई।
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4. जागराते के प्रकार
जागरातों को उद्देश्य और आयोजन के आधार पर कई प्रकारों में बाँटा जा सकता है:
1. देवी जागराता:
सबसे लोकप्रिय प्रकार।
विशेषतः नवरात्रों में आयोजित किया जाता है।
वैष्णो देवी, दुर्गा, काली आदि की पूजा होती है।
2. शिव जागराता:
महाशिवरात्रि पर होता है।
'ओम् नमः शिवाय' का जाप, शिव तांडव स्तोत्र आदि का गायन होता है।
3. बालाजी जागराता:
श्री हनुमान जी के उपासकों द्वारा आयोजित।
मंगलवार या शनिवार को किया जाता है।
4. श्रीराम/श्रीकृष्ण जागराता:
रामनवमी, जन्माष्टमी पर विशेष रूप से होता है।
रामचरितमानस, श्रीमद्भगवद्गीता आदि का पाठ होता है।
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5. जागराते का आयोजन प्रक्रिया
1. तिथि और समय चयन:
शुभ तिथि पंडित या ज्योतिष से परामर्श लेकर तय की जाती है।
आमतौर पर रात 9 बजे से सुबह 5 बजे तक चलता है।
2. स्थल सज्जा:
पंडाल या मंदिर सजाया जाता है।
रंग-बिरंगी लाइटें, फूल, तोरण आदि का प्रयोग होता है।
3. मंच व्यवस्था:
मंच पर देवी-देवताओं की मूर्तियाँ या तस्वीरें स्थापित की जाती हैं।
भजन मंडली या कलाकारों के बैठने की व्यवस्था होती है।
4. भंडारा और प्रसाद:
आयोजन के अंत में प्रसाद वितरण और भंडारे की व्यवस्था होती है।
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6. जागराते में होने वाली गतिविधियाँ
1. भजन-कीर्तन:
भजन मंडली रात्रि भर देवी-देवताओं की स्तुति करती है।
ढोलक, हारमोनियम, मंजीरा आदि वाद्ययंत्र प्रयोग में आते हैं।
2. धार्मिक नाट्य मंचन:
रामलीला, कृष्णलीला जैसे नाटकों का मंचन भी होता है।
3. कथा वाचन:
देवी भागवत, शिव पुराण, रामायण, भागवत कथा आदि का संक्षिप्त पाठ किया जाता है।
4. आरती:
रात के अंत में भव्य आरती होती है।
लोग दीप जलाकर आरती में शामिल होते हैं।
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7. जागराते का सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
सामूहिकता: जागराता समाज को एकत्र करता है।
सांस्कृतिक पहचान: भक्ति गीतों, नृत्य और वेशभूषा से संस्कृति जीवंत रहती है।
लोक संगीत का संवर्धन: लोक गायक, भजन गायक और कलाकारों को मंच मिलता है।
सेवा भावना: प्रसाद, पानी, शौचालय, बैठने की व्यवस्था आदि सेवा के माध्यम बनते हैं।
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8. प्रसिद्ध जागराते स्थल
1. कटरा (वैष्णो देवी):
सबसे प्रसिद्ध स्थान।
पूरे भारत से श्रद्धालु यहाँ जागराते में भाग लेते हैं।
2. कालका जी मंदिर (दिल्ली):
नवरात्रों में विशेष आयोजन।
3. ज्वाला देवी (हिमाचल प्रदेश):
जागराते के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण।
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9. जागराते से जुड़े कुछ प्रसिद्ध भजन
"मैया यशोदा ये तेरा कन्हैया..."
"जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी..."
"भोलो भंडारी, भोलेनाथ हमारा सहारा है..."
"मेरे बांके बिहारी लाल की जय..."
"जय श्री राम जय राम जय जय राम..."
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10. आधुनिक युग में जागराते के स्वरूप में बदलाव
लाइव स्ट्रीमिंग: अब जागरातों का सीधा प्रसारण यूट्यूब व फेसबुक पर होता है।
प्रोफेशनल भजन मंडलियाँ: अब प्रोफेशनल कलाकारों को बुलाया जाता है।
डेकोरेशन और साउंड सिस्टम: आधुनिक लाइटिंग और डीजे साउंड का उपयोग होता है।
वाणिज्यिकता: कुछ जागराते व्यवसायिक हो गए हैं, जिससे मूल भाव कहीं-कहीं कम हो गया है।
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11. जागराते में भाग लेने के लाभ
मन को शांति मिलती है।
नकारात्मकता दूर होती है।
सामूहिक आराधना से सकारात्मक ऊर्जा फैलती है।
जीवन में भक्ति का संचार होता है।
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12. सावधानियाँ और मर्यादा
धार्मिक मर्यादा बनाए रखें।
ऊँची आवाज में डीजे न बजायें जिससे आस-पास के लोग परेशान हों।
भोजन और प्रसाद की शुद्धता रखें।
समय की पाबंदी रखें।
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निष्कर्ष
जागराता केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, यह एक सामाजिक-सांस्कृतिक उत्सव है जो श्रद्धा, भक्ति, सामूहिकता और परंपरा का संगम है। यह हमें हमारे मूल्यों से जोड़ता है और हमारे जीवन में आध्यात्मिकता का संचार करता है। आज के युग में जहाँ भौतिकता हावी हो चुकी है, वहाँ जागराते जैसे आयोजनों का महत्व और भी बढ़ जाता है।
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