🇮🇳 भारत का राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा): एक विस्तृत हिंदी लेख
🔸 प्रस्तावना
भारत का राष्ट्रीय ध्वज, जिसे आमतौर पर "तिरंगा" कहा जाता है, देश की आज़ादी, एकता, समर्पण और गौरव का प्रतीक है। यह केवल एक ध्वज नहीं, बल्कि देशवासियों की भावनाओं, बलिदानों और संस्कृति का प्रतीक है। इसके रंग, चक्र और कपड़ा — सभी के पीछे एक गहन सोच और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है।
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🔸 राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास
1. प्रारंभिक अवधारणाएं
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के समय कई झंडे प्रयोग में लाए गए। 1906 में कोलकाता के पारसी बागान स्क्वायर में फहराए गए ध्वज को भारत का पहला राष्ट्रीय ध्वज माना जाता है। इसमें तीन रंग (हरा, पीला और लाल) थे।
2. 1921 का संस्करण
महात्मा गांधी ने 1921 में एक झंडे की कल्पना की, जिसमें दो रंग – लाल और हरा थे, जो हिंदू और मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करते थे। बाद में सफेद रंग और चरखा जोड़ा गया।
3. 1931 का झंडा
यह झंडा तिरंगे के रूप में आया, जिसमें केसरिया, सफेद और हरा रंग था तथा बीच में चरखा था। इसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपनाया।
4. 22 जुलाई 1947 का निर्णय
भारत की संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 को वर्तमान ध्वज को स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। इसमें चरखे की जगह अशोक चक्र को रखा गया।
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🔸 राष्ट्रीय ध्वज का स्वरूप और संरचना
1. तीन क्षैतिज पट्टियाँ:
केसरिया (ऊपर) – साहस और बलिदान का प्रतीक।
सफेद (बीच में) – सत्य, शांति और पवित्रता का प्रतीक।
हरा (नीचे) – समृद्धि, जीवन और विकास का प्रतीक।
2. अशोक चक्र:
यह गहरे नीले रंग का 24 तीलियों वाला चक्र है, जो मध्य की सफेद पट्टी में स्थित होता है।
यह सारनाथ स्थित अशोक स्तंभ से लिया गया है और 'धर्म' के चक्र का प्रतीक है।
3. अनुपात:
ध्वज की लंबाई और चौड़ाई का अनुपात 3:2 होता है।
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🔸 राष्ट्रीय ध्वज का निर्माण
1. खादी कपड़े का उपयोग
भारत का राष्ट्रीय ध्वज केवल खादी (हाथ से बुना गया सूती या रेशमी कपड़ा) से ही बन सकता है। यह भारत के स्वदेशी और आत्मनिर्भरता आंदोलन से जुड़ा हुआ है।
2. निर्माण का एकाधिकार
भारत में केवल एक संस्था को झंडा बनाने की अनुमति है:
> कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ (KKGSS) – हुबली, कर्नाटक
यह संस्था ही ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (BIS) से प्रमाणित है और यह सुनिश्चित करती है कि हर झंडा तय मानकों के अनुरूप हो।
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🔸 झंडा निर्माण की प्रक्रिया
1. खादी को हाथ से बुना जाता है।
2. कपड़े को तीन भागों में रंगा जाता है – केसरिया, सफेद और हरा।
3. अशोक चक्र की कढ़ाई या प्रिंट किया जाता है, जो विशेष मशीनों से किया जाता है।
4. प्रत्येक झंडे की गुणवत्ता की जांच होती है।
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🔸 झंडे से जुड़े नियम और कानून
1. भारतीय ध्वज संहिता 2002 (Flag Code of India)
यह 26 जनवरी 2002 से लागू हुई।
इसने आम नागरिकों को किसी भी दिन झंडा फहराने की अनुमति दी, लेकिन सम्मानपूर्वक।
2. कुछ मुख्य नियम:
ध्वज ज़मीन पर नहीं गिरना चाहिए।
झंडे का उपयोग वस्त्र, गद्दी, मेज़पोश आदि के रूप में नहीं किया जा सकता।
फटे या मुरझाए झंडे का उपयोग निषेध है।
झंडे को सूर्यास्त के बाद केवल विशेष रोशनी में ही फहराया जा सकता है।
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🔸 झंडे का महत्व और प्रतीकात्मकता
रंग प्रतीक भाव
केसरिया त्याग और वीरता भारत के स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान
सफेद शांति और सच्चाई विविधता में एकता
हरा समृद्धि और प्रगति कृषि और हरियाली
अशोक चक्र धर्म, गति और न्याय निरंतर प्रगति की प्रेरणा
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🔸 राष्ट्रीय ध्वज और स्वतंत्रता संग्राम
तिरंगा स्वतंत्रता आंदोलन का केंद्र बिंदु रहा। झंडे ने:
क्रांतिकारियों को जोड़ा,
एकता और आत्मगौरव की भावना भरी,
और अंग्रेजों को चुनौती दी।
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🔸 ध्वज के अपमान से संबंधित कानून
भारतीय दंड संहिता की धारा 2, 3, 5 और 6 के अनुसार, राष्ट्रीय ध्वज के अपमान पर:
3 साल तक की सजा या
जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
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🔸 ध्वज से जुड़े महत्वपूर्ण दिवस
1. 26 जनवरी – गणतंत्र दिवस
2. 15 अगस्त – स्वतंत्रता दिवस
3. 2 अक्टूबर – गांधी जयंती
4. 21 अक्टूबर – पुलिस स्मृति दिवस
5. 7 दिसंबर – सशस्त्र सेना ध्वज दिवस
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🔸 झंडे से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
झंडा बनाने के लिए खादी का धागा भी हाथ से काता होना चाहिए।
झंडे की सफेदी और रंग के मानक BIS द्वारा निर्धारित होते हैं।
झंडा केवल अफसर, शहीदों के ताबूत और सरकारी इमारतों पर लहराया जा सकता है (विशेष परिस्थितियों में)।
दुनिया का सबसे ऊंचा भारतीय ध्वज पाकिस्तान सीमा के पास वाघा बॉर्डर पर फहराया गया है।
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🔸 हर घर तिरंगा अभियान
यह अभियान आजादी का अमृत महोत्सव (2022) के तहत शुरू किया गया।
उद्देश्य: हर नागरिक को अपने घर पर ध्वज फहराने के लिए प्रेरित करना।
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🔸 निष्कर्ष
भारत का राष्ट्रीय ध्वज केवल एक रंग-बिरंगी पट्टी नहीं, बल्कि एक गहन राष्ट्रभावना का मूर्त रूप है। यह हमारी आज़ादी, लोकतंत्र, विविधता, और विकास की पहचान है। हमें तिरंगे का न सिर्फ सम्मान करना चाहिए, बल्कि इसकी आत्मा को भी अपने जीवन में अपनाना चाहिए।
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