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नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University)


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 नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) 


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नालंदा विश्वविद्यालय : प्राचीन भारत का गौरव


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1. भूमिका

नालंदा विश्वविद्यालय, प्राचीन भारत का एक महान शैक्षणिक संस्थान, न केवल भारत बल्कि सम्पूर्ण विश्व की ऐतिहासिक धरोहरों में से एक है। यह बिहार के नालंदा ज़िले में स्थित था और 5वीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी तक ज्ञान का विश्वस्तरीय केंद्र रहा। इसे विश्व का पहला आवासीय (Residential) विश्वविद्यालय कहा जाता है, जहाँ एक ही समय में हजारों विद्यार्थी और शिक्षक एक साथ रहते और अध्ययन करते थे।

नालंदा की ख्याति इतनी थी कि यहाँ शिक्षा पाने हेतु चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत, श्रीलंका, मंगोलिया और कई अन्य देशों से विद्यार्थी आते थे। विशेष रूप से यह बौद्ध धर्म दर्शन की पढ़ाई के लिए विश्व प्रसिद्ध था।


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2. स्थापना का इतिहास

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त सम्राट कुमारगुप्त प्रथम (415–455 ई.) के शासनकाल में हुई। गुप्त काल को भारतीय इतिहास का “स्वर्ण युग” कहा जाता है और इसी समय भारत में शिक्षा, साहित्य, कला और विज्ञान ने चरमोत्कर्ष प्राप्त किया।

कुमारगुप्त ने नालंदा में इस विशाल विश्वविद्यालय की नींव रखी।

बाद में शासक हर्षवर्धन (7वीं शताब्दी) और पाल वंश के राजाओं ने इसे और भी विस्तार और समृद्धि दी।



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3. नालंदा का भौगोलिक और सांस्कृतिक महत्व

नालंदा बिहार राज्य के वर्तमान नालंदा ज़िले में स्थित था।

यह क्षेत्र मगध साम्राज्य का हिस्सा था, जो प्राचीन काल से ही शिक्षा और बौद्ध धर्म का केंद्र रहा।

यहाँ की भूमि उपजाऊ थी, जिसके कारण बड़े पैमाने पर खेती होती थी और राज्य समृद्ध था।

बौद्ध भिक्षुओं और विद्वानों के लिए यह स्थान एक आदर्श केंद्र बन गया।



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4. शिक्षा प्रणाली

नालंदा विश्वविद्यालय की शिक्षा प्रणाली अत्यंत सुदृढ़ और अनुशासित थी।

(क) प्रवेश प्रक्रिया

यहाँ प्रवेश पाना बहुत कठिन था।

विद्यार्थियों को प्रवेश से पहले कठिन मौखिक परीक्षा देनी पड़ती थी।

केवल वही छात्र प्रवेश पा सकते थे जो गहन अध्ययन और बुद्धिमत्ता का प्रमाण दे पाते।


(ख) अध्ययन की पद्धति

शिक्षा गुरुकुल पद्धति के समान थी, जहाँ शिक्षक और छात्र एक साथ रहते थे।

पढ़ाई वाद-विवाद, चर्चा और तर्क पर आधारित होती थी।

विद्वान अध्यापक छात्रों को स्वतंत्र चिंतन और शोध के लिए प्रेरित करते थे।



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5. प्रमुख विषय

नालंदा विश्वविद्यालय में केवल धार्मिक शिक्षा ही नहीं, बल्कि अनेक विषय पढ़ाए जाते थे।

1. बौद्ध धर्म दर्शन – यह मुख्य विषय था, और इसी के कारण नालंदा विश्व प्रसिद्ध था।


2. तर्कशास्त्र (Logic) – छात्रों को वाद-विवाद और तार्किक चिंतन सिखाया जाता था।


3. चिकित्सा विज्ञान (Medical Science) – रोगों के उपचार और आयुर्वेद पर शिक्षा दी जाती थी।


4. गणित और ज्योतिष – शून्य की खोज और खगोल विद्या पर भी यहां गहन अध्ययन होता था।


5. भाषा और साहित्य – संस्कृत, पाली और अन्य भाषाओं का अध्ययन कराया जाता था।


6. वेद और अन्य शास्त्र – बौद्ध ग्रंथों के साथ-साथ हिन्दू शास्त्रों का भी अध्ययन होता था।




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6. नालंदा की वैश्विक ख्याति

नालंदा केवल भारत तक सीमित नहीं था, बल्कि इसका प्रभाव पूरे एशिया तक फैला हुआ था।

चीन के यात्री ह्वेनसांग (Xuanzang) और इत्सिंग (Yijing) ने यहाँ अध्ययन किया।

ह्वेनसांग ने अपनी पुस्तक Si-yu-ki में नालंदा की महिमा का विस्तृत वर्णन किया है।

उनके अनुसार यहाँ लगभग 10,000 छात्र और 1500 शिक्षक रहते थे।

तिब्बत और मंगोलिया से भी अनेक भिक्षु यहाँ अध्ययन के लिए आए।



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7. पुस्तकालय "धर्मगंज"

नालंदा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा था इसका विशाल पुस्तकालय, जिसे “धर्मगंज” कहा जाता था।

यह पुस्तकालय नौ मंजिला भवन में स्थित था।

इसमें लाखों ग्रंथ और पांडुलिपियाँ संग्रहित थीं।

बौद्ध ग्रंथों के अलावा यहाँ विज्ञान, चिकित्सा, गणित, खगोलशास्त्र और साहित्य से संबंधित पुस्तकें भी थीं।

कहा जाता है कि यह पुस्तकालय इतना विशाल था कि जब इसे जलाया गया तो कई महीनों तक आग बुझी नहीं।



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8. समाज और संस्कृति पर प्रभाव

नालंदा विश्वविद्यालय ने भारतीय समाज और संस्कृति पर गहरा प्रभाव डाला।

यहाँ से पढ़े हुए विद्वान पूरे एशिया में शिक्षा का प्रचार करते थे।

इसने भारत को ज्ञान का केंद्र (Center of Knowledge) बनाया।

यहाँ की शिक्षा ने बौद्ध धर्म को एशिया के विभिन्न हिस्सों में फैलाने में मदद की।



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9. नालंदा का पतन

12वीं शताब्दी में तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय पर आक्रमण किया (1193 ई.)।

उसने विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया।

लाखों ग्रंथों से भरा पुस्तकालय जला दिया गया।

विद्वानों और भिक्षुओं की हत्या कर दी गई।


यह घटना न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए एक बड़ा बौद्धिक नुकसान थी।


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10. नालंदा की विरासत

हालांकि नालंदा विश्वविद्यालय नष्ट हो गया, लेकिन इसकी विरासत आज भी जीवित है।

इसने शिक्षा को वैश्विक स्वरूप दिया।

यहाँ की अध्ययन पद्धति और स्वतंत्र चिंतन का विचार आज भी प्रेरणादायक है।



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11. आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय

भारत सरकार ने वर्ष 2010 में नालंदा विश्वविद्यालय को पुनः स्थापित करने का निर्णय लिया।

यह बिहार के राजगीर के पास खोला गया है।

इसे एक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया है।

इसमें कई देश मिलकर सहयोग कर रहे हैं, जैसे चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर आदि।

यहाँ आधुनिक विषयों के साथ-साथ एशियाई सभ्यता और इतिहास पर भी शोध कार्य होता है।



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12. निष्कर्ष

नालंदा विश्वविद्यालय केवल एक शिक्षा केंद्र नहीं था, बल्कि यह मानवता की उस महान परंपरा का प्रतीक है जिसमें ज्ञान को सबसे बड़ी शक्ति माना गया। इसका इतिहास हमें बताता है कि जब शिक्षा, शोध और स्वतंत्र चिंतन को महत्व दिया जाता है, तब कोई भी राष्ट्र विश्व में अग्रणी बन सकता है।

आज का आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय इस बात का प्रमाण है कि प्राचीन गौरव को पुनः जीवित किया जा सकता है और भारत एक बार फिर विश्वगुरु बनने की क्षमता रखता है।


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